जब मंजिले ही बड़ी नहीं,
संघर्ष क्या खाक करोगे?
बेहतर बनने का लक्ष्य नहीं,
विचारों को कैसे साफ करोगे?
धूल तो कोने में जब ही जाती है,
खुदा से कैसे आंखें चार करोगे?
जब मंजिले ही बड़ी नहीं,
संघर्ष क्या खाक करोगे?
बेहतर बनने का लक्ष्य नहीं,
विचारों को कैसे साफ करोगे?
धूल तो कोने में जब ही जाती है,
खुदा से कैसे आंखें चार करोगे?