पेड़ का श्रृंगार देखो तो खिड़की के बाहर कैसे लहरा रही वो डाली डाली पर है पत्ते हज़ार जैसे हो रमणीय के बाल कैसे अपने बालो लहरा रही फूलों से सजा रही मानो बारिश के पानी को छिटका रही

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