उठी सुबह की मजबूरी के संग फिर लबादे बांधेगा वो समेटेगा रात का बिस्तर लेकिन पर हर चीज़ न उठा पायेगा वो और दासता परेशानी की लेकर गीत कोई गाने निकल है मायूस गली का बंजारा ढूंढने फिर कोई घर निकला है

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